सम्मेदशिखर तीर्थ परिचय

ऐसी अनुश्रुति है कि श्री सम्मेदशिखर और अयोध्या ये दो तीर्थ अनादिनिधन- शाश्वत हैं । अयोध्या में सभी तीर्थंकर जन्म लेते हैं और सम्मेदशिखर से निर्वाण प्राप्त करते हैं । किन्तु इस हुंडावसर्पिणी के दोष से इस बार अयोध्या में पाँच ही तीर्थंकर जन्मे हैं शेष अन्य नगरियों में जन्मे हैं । ऐसे ही भगवान ऋषभदेव ने कैलाशपर्वत से, वासुपूज्य ने चंपापुरी से, नेमिनाथ ने ऊर्जयंत से और महावीर स्वामी ने पावापुरी से निर्वाण प्राप्त किया है, शेष बीस तीर्थंकरों ने यहाँ सम्मेदशिखर से मोक्ष प्राप्त किया है। कहा भी है-

बीसं तु जिणवरिंदा अमरासुरवंदिदा धुद किलेसा ।
सम्मेदे गिरिसिहरे णिव्वाणगया णमो तेसिं ।।

तिलोयपण्णत्ति में प्रत्येक तीर्थंकरों के साथ मोक्ष प्राप्त करने वालों की संख्या भी दी गई है। इन बीस तीर्थंकरों से अतिरिक्त अनेक मुनिगण यहाँ पर कर्मों का नाश कर मोक्ष पधारे हैं। सम्मेदशिखर विधान में और टोकों के अर्ध में एक-एक टोंक से मोक्ष प्राप्त करने वालों की संख्या दी गयी है पुनः किस-किस टोंक की वंदना से कितने-कितने उपवासों का फल मिलता है, यह भी बतलाया गया है। यहाँ सम्मेदशिखर मधुबन में बीसपंथी, तेरहपंथी तथा श्वेताम्बर नाम से तीन कोठियाँ हैं। बीसपंथी कोठी सबसे प्राचीन है। लगभग चार सौ वर्ष पुरानी है, इस बीसपंथी कोठी के बाद लगभग | २५० वर्ष बाद श्वेतांबर कोठी बनी हैं। इसके बाद लगभग १०० वर्ष बाद तेरहपंथी कोठी बनी है।